DSC_9045(जनजातियों पर दो दिवसीय सम्मेलन प्रारम्भ)

उदयपुर ,जनजातियों के विकास के लिए सामाजिक हैसियत से कोई समाज सेवी वर्तमान में नहीं है। जनजातियों का वास्तविक विकास समाज सेवियों के समर्पण भाव से ही सम्भव है। वर्तमान परिदृश्य में जनजातियों को अपने विकास के लिए अन्य समाजों के साथ संवाद एवं विचार विनिमय करना चाहिए। इससे उनकी विचारधारा व्यापक होगी और विचार की व्यापकता ही विकास का वास्तविक पथ है। उक्त विचार राजीव गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टी. सी. डामोर ने भूपाल नोबल्स स्नातकोŸार महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। आज आवश्यकता जनजातियों में विकास के असली मॉडल की समझ को विकसित करने की है। विशिष्ट अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए प्रो. संजय लोढा ने जनजातीय विकास के बाधक तत्वों का उल्लेख करते हुए कहा कि जनजातियों के विकास के लिए नेहरूजी के पंचशील सिद्धान्त की तरह मध्यम मार्ग को अपनाए जाने की आवश्यकता है जिससे उनका विकास भी और उनकी सांस्कृतिक पहचान भी बनी रहे। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया की औद्योगिक घराने रिलायन्स, टाटा आदि कल-कारखानंे स्थापित कर जनजातियों को विस्थापित कर रहे है पर उनके पुनर्वास की कोई कार्य योजना नहीं है।
सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में विषय पर प्रकाश डालते हुए जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. के. एन. व्यास ने विकास के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार के द्वारा आज़ादी के बाद से सतत् प्रयास के बाद भी विकास नहीं हो पाने का मूल कारण विभिन्न क्षेत्रों में जागरूकता का अभाव है। उन्होंने कहा कि जनजातियों को आज वैश्विक परिदृश्य से जोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जनजातियों के विकास के लिए विकास के कार्यक्रम बनाए जाए, कार्यक्रमों के लिए जागरूक किया जाए, कार्यक्रमों तक उनकेी पहुँच हो तथा कार्यक्रमों पर उनका नियन्त्रण हो तभी विकास के वास्तविक प्रतिदर्श को लागू कर लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष राजसमंद के पूर्व जिला प्रमुख श्री हरिओम सिंह राठौड़ ने कहा कि विकास योजनाओं की पूर्ण सफलता न होने का प्रमुख कारण समर्पण का अभाव है। जनजतियों के विकास के लिए जितने भी सरकारी व गैर-सरकारी एजेन्सियाँ है उन्हें विकास की दृष्टि से ही कार्य करना होगा तभी जनजातियों का पूर्ण विकास होगा। सम्माननीय अतिथि प्रो. दरियाव सिंह चुण्डावत ने कहा कि शिक्षा एवं स्वास्थ्य के बिना विकास की अवधारणा को मूर्त करना असम्भव है। प्रमुख समाजशास्त्री प्रो. मोहन आडवाणी ने कहा कि नया समाज बहुआयामी है अतः सामाजिक सम्बन्धों को सुधारा जाए तथा विकास के लिए बाहरी व आन्तरिक सोच को विकसित करने कि आवश्यकता है।
इससे पूर्व महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. विक्रम सिंह शक्तावत ने अतिथियों का स्वागत किया एवं दो दिवसीय सम्मेलन की रूपरेखा डॉ. कमल सिंह राठौड़ ने प्रस्तुत की व धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ. ज्योतिरादित्य सिंह भाटी ने दिया।
सम्मेलन के तकनीकी सत्रों में सोनाली शर्मा, डॉ. हेमेन्द्र सिंह शक्तावत, डॉ. ज्योतिरादित्य सिंह भाटी, भगवती लाल सुथार आदि ने पत्र वाचन किया तथा तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रमुख समाजशास्त्री प्रो. मोहन आडवाणी, प्रो. सी. एल. शर्मा एवं प्रो के. एन. व्यास ने की।

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