20140530_122227जनार्दनराय नागरराजस्थानविद्यापीठ (डीम्ड)विश्वविद्यालय के संघटकसाहित्य संस्थानद्वारामहाराणाप्रतापकी 474वीं जयंतीके पूर्वदिवसपर’’16 वीं शताब्दी के संदर्भमेंमेवाड़’’विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथिप्रो. एस. एस. सारंगदेवोत,वाइसचांसलर जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ(डीम्ड) विश्वविद्यालय,उदयपुर, अध्यक्ष, डॉ. राजशेखरव्यास, पूर्व जिलाशिक्षा अधिकारी एवंमुख्य वक्ता, प्रो. के. एस. गुप्ता, प्रसिद्ध इतिहास वेता एवं पूर्व अधिष्ठाता कला महाविद्यालय मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुरथे।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. राजशेखर व्यास ने 16वीं शताब्दी के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए हिन्दू स्थापत्य कला एवं चित्रकला में होने वाले सांस्कृतिक परिर्वतन की ओर ध्यान इंगित किया।इस अवसर पर उन्होने इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता पर भी बल दिया।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता इतिहास विद् प्रो. के. एस. गुप्ता ने मध्यकाल की दृष्टिसे 16 वीं शताब्दी को महत्वपूर्ण बताते हुए मुगल मेवाड़ संघर्ष व स्थानीय शक्तियों की प्रबल एकता की ओर संकेत करते हुए उदयसिंह से महाराणा प्रताप तक की अहम भूमिका पर प्रकाश डाला।उनका यह कथन कि समग्र दृष्टिकोण से 16वीं शताब्दी का अपना विशेष महत्वहै,इतिहास और संस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुख्य अतिथि वाइस चांसलर प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत,, ने कहा कि संपूर्ण भारत के इतिहाससे यदि मेवाड़ के इतिहास को निकाल दिया जाए तो इतिहास अपनी गौरव पूर्ण परम्परा से रिक्त हो जाएगा।आज के युवाओं को प्रताप के व्यक्तित्व का अनुकरण करते हुए अपनी कर्तव्य निष्ठता पर बल देना चाहिये क्योंकि उनका संपूर्ण व्यक्तित्व अनुकरणीय है।
इस अवसरपर प्रो. गिरीश नाथ माथुर ने अपने वक्तव्य में16वीं शताब्दी के मेवाड़ में राजनीति एवंसैन्य पद्वतियों में आए नए परिवर्तनों पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान निदेशक प्रो. ललितपाण्डेय ने 16वीं शताब्दी के इतिहास से संदर्भ में मेवाड़ का योगदान विषय के महत्व को बताया।
इस अवसर पर संस्थान के डॉ. महेश आमेटा ने महाराणा प्रताप पर काव्य पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के डॉ. प्रियदर्शी ओझा ने दिया एवंसंयोजनडॉ. कुलशेखरव्यास ने किया।

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