उदयपुर , २३ वर्षीय मासूम के साथ बलात्कार और फिर वहशियाना हरकत और फिर उस मासूम की मौत ये सब देख के किसी पे नहीं खुद पे, एक इंसान होने पर शर्मिंदगी होती है । आज आदमखोर जानवर भी हमे देख के कह रहे होंगे और खुदा का शुक्र अदा कर रहे होंगे के के अच्छा है जो हम इंसान नहीं है अगर इंसान ऐसे होते हो भाई नहीं बनना हमे इंसान और ऊपर बैठा खुदा भी सोच रहा होगा के मेने तो अच्छे खासे इंसान बनाये थे लेकिन ये केसे वहशी दरिन्दे बन गए । आज सच में किसी को दोष देने का दिल नहीं है बस खुद की नाकामी पर शर्मिंन्दा है के एक बेटी एक बहन के लिए कुछ भी नहीं कर पाए।

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न तो पुलिस बन के उसकी आबरू बचा पाए और न ही बड़े से बड़े ओहदे पे बैठ कर उन गुनाहगारों को अभी तक सजा दिला पाए और न ही डॉक्टर बन के उसकी जान बचा पाए एक छोटी सी तसल्ली सिर्फ इस बात की के एक हिन्दुस्तानी बन कर उस मासूम की मौत में दुखी जरूर है , उसके गुनाहगारों के लिए मौत की सजा के लिए हम एक जरूर है ।

लेकिन क्या इस आवाज़ इस आग को हम यही ख़तम कर देगे क्या ऐसा नहीं हो सकता के आज उनकी मौत की मांग के साथ साथ खुद एक फैसला ले कि किसी को दोष नहीं देते हुए हम अपनी नज़र को पाक करे औरत के प्रति हम हमारी मानसिकता बदलें ।और हमारे आस पास का “माहोल हम स्वच्छ” रखें हर बुरी नज़र पर हमारी नज़र रखे तो फिर शायद ऐसा करने की कभी कोई जुर्रत न करे और शायद ये हमारी उस मासूम को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

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