उदयपुर, जब से मानव जाति ने तन ढकने एवं अन्य जरुरतों की पूर्ति के लिए वस्त्रों का आविष्कार किया इसी के साथ पगडी ने भी अपना मान सम्मान पाया। खास तौर से मांगलिक कार्यो सहित परिवार के सदस्यों के पंचतत्व में विलीन होने तथा अन्य अवसरों पर पगडी अपने-आप में आन-बान और शान की प्रतीक रही है।

पगडी और साफे चाहे भले ही धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे है लेकिन मांगलिक कार्यो के दौरान दुल्हें सहित परिजनों द्वारा विभिन्न प्रकार की पगडी बांधना आज भी शान की बात कहलाती है। उदयपुर के दौलत सैन ने अपने पिता के हुनर को आगे बढाते हुए डेढ इंच से लेकर ११११ मीटर लम्बे कपडे को विशाल पगडी का रुप दिया है, जिसका वजन २१ किलोग्राम है। इस पगडी की खासियत यह है कि इसका नाम कसूमल भोपालशाही पाग दिया गया है जिसमें विशाल लटकन, चन्द्रमा, इमली, पछेडी व तुर्रा कलंगी आकर्षक रुप से सजाइ गई है।

सैन बताते है कि वे अभी तक फतेहशाही, भोपालशाही, अमरशाही, शिवाजी पगडी, सरदारी पगडी, पठानी पगडी, महाराष्ट्र की शाही पगडी, फेंटे, वर्तमान महाराणा अरविन्दसिंह मेवाड के लिए शाही पगडी बनाई है। वे साफे बनाने में भी सिद्घहस्त है। वे जौधपुरी, जयपुरी, मारवाडी, मेवाडी, हाडोती एवं गुजराती साफे को भी सुन्दर एवं विभिन्न रंगों से आकार देते है। पिछले ३२ वर्षो से इस कला को आगे बढा रहे श्री सेन ने पूर्व में ६११ मीटर लंबे कपडे से विशाल पगडी भी बनाई जिससे उदयपुर के हल्दीघाटी म्यूजियम में प्रदर्शित किया गया है। साथ ही ४५१ मीटर लंबे कपडे से बनाई पगडी उदयपुर के आलोक संस्थान में प्रदर्शित की गई है।

वे चाहते है कि विलुप्त हो रही इस कला को निरन्तर आगे बढाने के लिए वे सदैव प्रयासरत रहेंगे। उन्होंने इसके लिए गिनिजबुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में भी अपना नाम दर्ज करने के लिये प्रस्ताव भेज रखे है।

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