उदयपुर, नगर निगम में सभी समितियां भंग होने के बाद महापौर रजनी डांगी के सामने समिति के पुर्नगठन और अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर कड़ी चुनौती पैदा हो गई है। कल 30 मई को नगर निगम की बोर्ड बैठक में महापौर को समितियों को पुनर्गठन करना है। एेसे में विरोधी धड़ा भी ताक लगाए बैठा है कि उन्हें कौनसी समिति में अध्यक्ष की कुर्सी दी जाती है या फिर सिर्फ समिति सदस्य बने रहना पड़ेगा। इस बीच विपक्ष की आेर से भी एक समिति लेने की मांग उठ खड़ी हुई है। विपक्षी पार्षदों का कहना है कि राजस्थान में जहां भी निगम है, वहां पर विपक्ष को समिति दी गई है। एेसे में महापौर के सामने कड़ी चुनौती है कि आखिर वह 30 मई को घोषणा के बाद सभी को खुश रख पाएगी या यह बोर्ड फिर गुटबाजी की भेंट चढ़ जाएगा।

यह समस्या रहेगी प्रमुख

समितियों को लेकर अगर जातिगत समीकरण की बात की जाए, तो जैन समाज के पार्षदों की संख्या ज्यादा है। पहले भी महापौर सहित छह समिति अध्यक्ष का पद भी जैन समाज को मिला हुआ है, जिनमें पारस सिंघवी, किरण जैन, कविता मोदी और खुद रजनी डांगी के पास समिति अध्यक्ष का पद है। अब एेसे में अगर समितियों का बदलाव होता है, तो इन सभी को तो प्रमुखता दी ही जाएगी, लेकिन दूसरे जैन पार्षदों में सिर्फ इसी बात का दुख व्याप्त है कि उन्हें भी एक मौका मिल पाता। पार्टी सूत्रों से पता चला है कि नगर निगम की बोर्ड बैठकों का विरोध करने वाले पार्टी के ही उप महापौर महेंद्रसिंह शेखावत, अर्चना शर्मा, मनोहरसिंह पंवार और विजय आहुजा को इस बार समिति अध्यक्ष का पद नहीं दिया जाएगा, लेकिन अगर यहां पर फिर से जातिगत आधार पर बात की जाए, तो विजय आहुजा को समिति मिलना तय है, क्योंकि उनको छोड़कर सिंधी समाज का एक भी पार्षद नहीं है।

13वीं समिति विरासत संरक्षण की होगी

निगम में अब तक 12 समितियां ही थी, लेकिन उदयपुर के हेरिटेज सिटी होने के कारण इस बार एक और समिति बनाने का निर्णय लिया गया है। यह १३वीं समिति विरासत सरंक्षण समिति होगी।

इनका कहना है :- ….

:समितियों की अभी तक कोई समीक्षा नहीं हुई है। इनके बदलाव से पहले एक कमेटी बनाई जाती है, जिसमें महापौर, उप महापौर और पार्टी के दिग्गज नेता शामिल होते हैं। उस कमेटी में पारदर्शिता के साथ समीक्षा होने के बाद जातिगत समीकरणों को मद्देनजर रखते हुए चुनावी वर्ष में बदलाव करना। संगठन के हित में है। समिति अध्यक्ष की कार्यक्षमता, वरिष्ठता और चुनावी वर्ष होने के कारण जातिगत समीकरण का भी ध्यान रखना चाहिए। अभी तक एेसा कुछ नहीं हुआ है। जब होगा, तो खुले मन से विचार करेंगे।

-महेन्द्रसिंह शेखावत, उप महापौर

 

:समितियों के गठन को लेकर 30 मई को बैठक रखी गयी है, जिसमें तय किया जाएगा कि किसको कौनसी समिति देनी है। कार्य कुशलता के आधार पर ही समिति अध्यक्ष बनाए जाएंगे। विपक्ष के किसी सदस्य को समिति अध्यक्ष बनाने का उदाहरण राज्य की किसी भी नगर निगम या परिषद् में होगा, तो उस पर भी विचार किया जाएगा।

-रजनी डांगी, महापौर

 

:समितियों में बदलाव होना चाहिए। यह हमेशा होता आया है, लेकिन सिर्फ महापौर का अधिकार नहीं है कि वह समितियों में बदलाव कर सके। बिना किसी कारण किसी भी समिति अध्यक्ष को निकाला जाता है, तो वह महापौर के लिए खतरनाक हो सकता है। बिना समीक्षा के किसी को भी हटाना गैर कानूनी होगा।

-अर्चना शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, राजस्व समिति

 

:जयपुर में विपक्ष के नेता को कमरा, गाड़ी और एक समिति अध्यक्ष का पद दे रखा है। राज्य सरकार के दिशा-निर्देशानुसार हर निगम में यह नियम रखा गया है। इसी तर्ज पर उदयपुर में भी विपक्ष को एक समिति मिलनी चाहिए।

-दिनेश श्रीमाली, नेता प्रतिपक्ष

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Contributer & Co-Editor at UdaipurPost.com

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