DSC_0072 DSC_0072उदयपुर , । राजस्थान साहित्य अकादमी और कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, राजस्थान सरकार के संयुक्त तत्वावधान में उदयपुर संभाग स्तरीय ‘कला मेले’ का शुभारम्भ एस.आई.ई.आर.टी. के मुख्य सभागार में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. इन्द्रवर्धन त्रिवेदी तथा अकादमी अध्यक्ष वेद व्यास की अध्यक्षता में हुआ। इस अवसर पर उदयपुर संभाग की कला, साहित्य व संगीत के क्षेत्र की स्थापित व प्रतिष्ठित विभूतियों – श्रीमती मांगी बाई आर्य(गायन), प्रो. नंद चतुर्वेदी(साहित्य), शकुन्तला पंवार (लोक नृत्य), डॉ. महेन्द्र भाणावत(लोक संस्कृति), श्री श्याम माली (कठपुतली), डॉ. पूनम जोशी(कत्थक नृत्य-सितार वादन), श्री शैल चोयल(चित्रकला), श्री प्रकाश कुमावत (पखावज) को मोहन लाल सुखाड़िया विश्व विद्वालय के कुलपति डॉ. आई.वी.त्रिवेदी तथा राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष श्री वेद व्यास द्वारा सम्मान राशि 2100/-रु., शॉल, प्रशस्ति पत्र आदि भेंट कर संस्कृति सम्मान प्रदान किया गया।

DSC_0045कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो0 आई.वी.त्रिवेदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज हम ऐसे चौहारे पर खड़े हैं जहाँ मूल्यों में गिरावट हो रही है। मूल्यों की गिरावट को रोकने में साहित्यकार की महती भूमिका है। यह सत्य है कि जिस समाज व देश में साहित्यकार व कलाकारों की पूजा होती है, सम्मान होता है, उस देश का भविष्य उज्ज्वल होता है उन्होंने कहा कि विश्व-विद्यालय भी फरवरी, 2013 में स्वर्ण जयन्ती समारोह के तहत ‘साहित्य व समाज’ विषय पर दक्षिण राजस्थान के रचनाकारों को आमंत्रित कर विमर्श संगोष्ठी का आयोजन करेगी।

इस अवसर पर सत्र की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष व प्रख्यात विचारक वेद व्यास ने कहा कि राजस्थान का सांस्कृतिक पुनर्जागरण इस अर्थ में महत्वपूर्ण है क्योंकि राजस्थान के समक्ष सामाजिक, आर्थिक विकास की भरपूर चुनौतियां है तथा जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता जैसे अनेक प्रश्न समाज में विघटन और अलगाव को बढ़ावा दे रहे हैं।श्री व्यास ने कहा कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है। यह सत्य है कि आजादी के बाद साहित्य का हस्तक्षेप समाप्त हो रहा है। साहित्य व कला को पीछे किया जा रहा है, ऐसे में राजस्थान को स्वयं से पूछना होगा कि तुम क्या हो ? अपनी मीरां को क्यों भूल गए ? क्यों ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को पराया मानते हो। उन्होंने कहा कि साहित्य व शिक्षा के जरिए बाजारवाद व अपराधी राजनीति के खतरों को हमें दूर करना होगा। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विकास से समाज का विकास नहीं होता, जब तक संस्कृति का ज्ञान नयी पीढ़ी को नहीं होगा, तब तक विकास सम्भव नहीं है।

उद्घाटन सत्र के पश्चात् ‘आंचलिक रचनाकार सम्मेलन’ का आयोजन किया गया , जिसमें डूंगरपुर, बांसवाड़ा, राजसमंद, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर जिलों के 100 से अधिक रचनाकारों ने ‘राजस्थान के सांस्कृतिक पुनर्जागरण’ मुख्य विषय के अन्तर्गत अंचल की सांस्कृतिक, साहित्यिक विशेषताओं पर चर्चा और विचार-विमर्श किया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता डॉ. सत्यनारायण व्यास (चित्तौड़गढ़), डॉ. महेन्द्र भाणावत, श्री अम्बालाल दमानी (उदयपुर) व डॉ. रेणु शाह (जोधपुर) ने अपने अमूल्य विचार व्यक्त किए।

वेद व्यास ने बताया कि दिनांक 29 और 30 दिसम्बर को आयोजित संगोष्ठियों में राजस्थान के सांस्कृतिक पुनर्जागरण विषय पर राजस्थान स्थित विभिन्न विश्व विद्यालयों के कुलपति, विभिन्न सांस्कृतिक संस्थानों के प्रमुख, संस्कृतिकर्मी और साहित्यकार चर्चा-विमर्श करेंगे।

 

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