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बिहार में एक पिता ने अपने बेटे पर मानहानि का मुकदमा इसलिए दायर कर दिया है क्योंकि बेटे ने अपने से ‘नीची’ जाति की लड़की से विवाह कर लिया था. अदालत ने इस मामले की सुनवाई शुरू कर दी है.

सिद्ध नाथ शर्मा पेशे से वकील हैं और उन्होंने अपने बेटे सुशांत जासु पर एक करोड़ रुपये की मानहानि का मुकदमा दायर किया है. उन्होंने अपने बेटे से यह भी कहा है कि वह उनके ‘सरनेम’ का इस्तेमाल न करे. सरनेम से किसी की जाति का अंदाजा लगाया जा सकता है.
इस मामले से पता चलता है कि भारतीय समाज में जाति की जड़े कितनी गहरी हैं. वे लोग जो अपनी जाति के बाहर शादी करते हैं, अक्सर अपने परिवार और समुदाय से बाहर कर दिए जाते हैं. सिद्ध नाथ शर्मा ने अपने बेटे सुशांत जासु के खिलाफ इस महीने की शुरुआत में मुकदमा दायर किया था. सुशांत आयकर मामलों का काम देखते हैं और उन्होंने एक बैंक अधिकारी से विवाह किया है.

हफ्ते के आखिर में हुई सुनवाई के दौरान पटना के दानापुर कोर्ट ने एडवोकेट शर्मा की दलीलें सुनी. सुनवाई की अगली तारीख 25 जनवरी की तय की गई है. सिद्ध नाथ शर्मा ने अदालत से कहा कि उनके बेटे ने इस महिला के साथ प्यार में पड़कर उससे विवाह करने का फैसला ठीक नहीं किया है.

उन्होंने जज त्रिभुवन नाथ से कहा, “जब कोई व्यक्ति पूरी नींद नहीं सोता है, वह बेचैन हो जाता है और फिर वह सही फैसला ले ही नहीं सकता. जैसा कि मेरा बेटा किसी के प्यार में पड़कर बेचैन हो गया और सही फैसला नहीं ले सका.” मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील मौजूद नहीं थे और सुशांत जासु ने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

सामंती समाज

सुशांत जासु ने बीबीसी से कहा, “यह एक पारिवारिक मामला है और मैं इस बारे में बात नहीं करूंगा.” इस दंपत्ति ने बीते साल नवंबर में विवाह कर लिया था और वे गुजरात में रह रहे हैं.

इससे पहले सिद्ध नाथ शर्मा ने बीबीसी से कहा, “अपनी जाति से बाहर की लड़की से विवाह करके मेरे बेटे ने न केवल मेरी प्रतिष्ठा धूमिल की है बल्कि 400 सालों से चले आ रहे हमारे खानदान की परंपरा को भी ध्वस्त कर दिया है. अब उसे अपनी गलतियों का हरजाना मुझे चुकाना होगा. उसे बाप के नाम के तौर पर मेरे नाम का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए.”

सिद्ध नाथ शर्मा अपने बेटे के बर्ताव से बेहद दुखी थे. उन्होंने कहा, “लोग कहते हैं कि प्यार अंधा होता है लेकिन प्यार किसी को पहले से चले आ रहे प्रेम को खत्म करने की इजाजत नहीं देता है, वो प्यार जो कि उसका हमारे परिवार के अन्य सदस्यों से था.” हालांकि शर्मा जी की पत्नी, तीनों बहनें और परिवार के अन्य सदस्य सुशांत के प्रेम विवाह में शरीक हुए.

इस पर वे कहते हैं कि परिवार के लोगों ने ‘भावनात्मक दबाव में आकर’ इस विवाह को स्वीकार किया. उनका कहना है कि मेरे बेटे को अपनी पत्नी को ‘उसकी सहमति से’ तलाक दे देना चाहिए और ‘अपनी ही जाति की किसी अन्य लड़की के साथ विवाह करने के लिए तैयार’ हो जाना चाहिए.

इस मसले पर समाज विज्ञानी श्रीकांत कहते हैं कि बिहार जैसे सामंती ढाँचे वाले समाज में जाति एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है.

एक और दिलचस्प बात ये भी है कि बिहार सरकार ने अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा देने के लिए 50 हज़ार रुपये की प्रोत्साहन राशि देने का एलान कर रखा है.

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