kota_coaching_एक ग़रीब पिता ने ग़रीबी में भी अपनी बच्ची को डॉक्टर बनाने की उम्मीद से कोटा पढ़ने के लिए भेजा था लेकिन वह दुनिया से ही चली गई.

उनकी बेटी निभा ने इसी महीने हॉस्टल के अपने कमरे में खुदकुशी कर ली. वह कोटा के एक कोचिंग में पढ़ रही थी.

झारखंड के गोविंद का आरोप है, “कोटा में कोचिंग के नाम पर गोरखधंधा चल रहा है. यहां शिक्षा, व्यवस्था और सुरक्षा नाम की कोई चीज़ नहीं है. यहां पढ़ रहे बच्चों की मॉनिटरिंग की व्यवस्था किसी भी स्तर पर नहीं है.”

लिहाजा अपने घर से सैंकड़ों मील दूर रह रहे बच्चे अवसाद का शिकार हो रहे हैं.

आत्महत्या

निभा की तरह ही बिहार के अश्विनी कुमार भी कोटा के कोचिंग संस्थान में पढ़ने वाले ऐसे छात्र थे जिन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुना.

अश्विनी के चाचा अरुण कुमार कहते हैं कि कोटा में पढ़ रहे बच्चों की पढ़ाई के फॉलोअप की कोई व्यवस्था नहीं है.

अरुण कुमार कहते हैं, “जिन बच्चों की पढ़ाई का स्तर लगातार गिरता जाता है उसकी भी किसी तरह की जानकारी अभिभावकों को नहीं दी जाती. ऐसे में बच्चा अकेले में अवसादग्रस्त होकर खुदकुशी जैसा कदम तक उठा लेता है.”

कोचिंग में होने वाले साप्ताहिक टेस्ट में अश्विनी की रैंक शुरुआती 323 से घटकर 1073 तक जा पहुंची थी. अपने सुसाइड नोट में भी उसने आत्महत्या का कारण पढ़ाई में पिछड़ना बताया था.

कोटा सिटी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शांतनु सिंह के मुताबिक़ 2015 में अब तक कोटा के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले 11 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. सिर्फ जून महीने में ही अब तक चार छात्र आत्महत्या कर चुके हैं.

उनके मुताबिक़ 2014 में 14 और 2013 में 26 छात्रों ने आत्महत्या की थी.

अवसाद

कोटा के प्रमुख मनोचिकित्सक डॉक्टर एमएल अग्रवाल बताते हैं कि यहां के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे अन्य बच्चों के मुकाबले 25 फ़ीसदी ज्यादा अवसाद के शिकार पाए जाते हैं. इसके कई कारण हैं. डर, तनाव, परेशानियों के साथ कुछ हद तक पारिवारिक पृष्ठभूमि भी.

कोटा में कोचिंग के जनक कहे जाने वाले वीके बंसल कहते हैं कि बहुत भावुक बच्चे ही आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं. इसमें कोचिंग संस्थानों को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है.

वे यह बात स्वीकार करते हैं कि बच्चों पर डॉक्टर या इंजीनियर बनने का परिजनों का दबाव एक बड़ी वजह है. इसके चलते अब यहां कोचिंगों में बोर्ड में 40 प्रतिशत अंक लाने वाले बच्चों को भी लिया जा रहा है. जिससे कोटा में शिक्षा का स्तर और माहौल दोनों ही प्रभावित हुए हैं.

मनोचिकित्सक डॉक्टर अग्रवाल बताते हैं कि कुछ समय पहले बिहार से यहां पढ़ने आए एक छात्र ने अपनी परेशानी बताई कि मेरे माता पिता चाहते हैं कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मैं तो लालू प्रसाद यादव बनना चाहता हूं.

Previous articleरमज़ान या रमदान!
Next articleफर्जी आईएएस के बड़े कारनामें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here