RPJHONL0231009201412Z48Z19 PMUdaipur . एक युवा जोड़ा तीन साल पहले एक दूसरे से मिला था, मेल-मुलाकात प्यार में तब्दील हो गई और फिर दोनों एक दूसरे के प्यार को एक मंजिल देना चाहते थे।

ईश्वर उन पर मेहरबान था और दोनों की मोहब्बत सात जन्मों के रिश्ते की ओर बढ़ चली। दोनों के घरवालों ने शादी तय कर दी। 4 सितंबर को बारात हंसी-खुशी घर से निकली लेकिन अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाई।

युवक जिस बस मेे सवार था, वह पानी के तेज धार में समा गई। दुल्हे समेत 64 लोग मौत के मुंह में चले गए। उस युवती के हाथों पर सजी मेहदी का रंग चटख है लेकिन चेहरा मायूस है, रो-रोकर बुरा हाल है। इस प्रेम कहानी का ऎसा अंजाम किसी ने नहीं सोचा था। यह घटना बाढ़ प्रभावित जम्मू-कश्मीर की है।

ऎसे शुरू हुई थी प्रेम कहानी
सुखविंदर डाक विभाग में दहाड़ी पर काम करता था जबकि 18 साल की जतिंदर कॉलेज में पढ़ती है। उन दोनों की मुलाकात 3 साल पहले हुई थी। वे दोनों रोज नौशेरा जाते थे और दोनों की मुलाकात बस में होती थी।

एक साल पहले दोनों ने नौशेरा के एक कंप्यूटर कोचिंग सेंटर में एडमिशन लिया। फिर दोनों के बीच अक्सर होने वाली मुलाकात मोहब्बत में बदल गई। दोनों के घरवाले एक दूसरे को पहले से ही जानते थे। उन लोगों ने दोनों की शादी तय कर दी।

शादी तय होने से दोनों खुश थे। सुखविंदर अपने लिए एक अलग घर बनवा रहा था। उसके पिता भगत सिंह ने बताया कि दोनों ने उस घर की जगह को लेकर क ई बातें की थी। दीवारों के रंग, मकान की डिजाइन से लेकर उसमें लगने वाले पर्दे तक का चयन दोनों ने किया था। जतिंदर को एक दूसरा पर्दा पसंद था उसके लिए सुखविंदर 45 किमी दूर रजौरी से पर्दा खरीद कर लाया था। सुखविंदर ने उस घर में लगाने के लिए इंवर्टर खरीदा था।

शादी के दिन टूटा कहर, पसरा मातम
राजपुर भट्टा गांव में 4 सितंबर को सुखविंदर के घर पर बारात तैयारी को लेकर चहल-पहल थी। वहीं जतिंदर के गांव लाम मेे बारात के स्वागत के लिए तैयारियां हो रही थीं। लेकिन उस दिन बारिश रूकने का नाम नहीं ले रही थी।

बाराती 3 घंटे से बारिश बंद होने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन सुबह 11 बजे उन बारातियों में से लगभग 200 लोग 3 बसों और अन्य छोटे वाहनों से लाम जाने को तैयार हो गए। सुखविंदर भी एक कार में अपने दोस्तों के साथ शादी का कुछ सामान लेकर बैठ गया।

झमीर के पास पुल के ऊपर से पानी की तेज धार बह रही थी। सुखविंदर कार से निकल कर बस में बैठ गया। वह बस अभी आधा पुल ही पार की थी, कि चालक की तरफ वाला पहिया एक गड्ढे में गिरा और बस नाले में पलट गई। उस बस में 70 से अधिक लोग सवार थे। 6 लोगों को तत्काल बाहर निकाल लिया गया लेकिन और लोग उस तेज धार में बह गए।

दो दिन बाद मिली लाश
घटना के दो दिन बाद के्रन से बस को निकाला गया। उसमें 13 लोगों के शव मिले, उसमें सुखविंदर का भी शव था। 31 लोगों के शव अलग-अलग जगहों पर पाए गए।

पुलिस ने बताया कि 64 लोगों की मौत हुई है लेकिन गांव वालों का कहना है कि 70 से 80 लोग मरे हैं। घटना के पांच दिन बाद भी लापता 20 लोगों की तलाश जारी थी। गांव के हर घर मेे मातम पसरा है।

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