1827_36 (1)उदयपुर. बाल चिकित्सालय की नर्सरी में भर्ती मासूम संक्रमण के साये में हैं। अस्पताल प्रशासन ने पिछले पांच माह से इसकी संक्रमण के स्तर की जांच भी नहीं की है। नियमानुसार हर 15 दिन बाद यह जांच होनी ही चाहिए। जांच के बाद ही रोकथाम के प्रभावी उपाय किए जाते हैं। डॉक्टर भी मानते हैं कि अमूमन जांच में गंभीर बीमारियां देने वाले जीवाणु (बैक्टीरिया) मिलते ही हैं और नवजातों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम होती है।
नवजातों की जान बचाने के लिए बनी नर्सरी की माइक्रोबीयल कल्चर (संक्रमण स्तर जांच) नहीं होने से यह भी पता नहीं चल पा रहा है कि नर्सरी में किस स्तर का संक्रमण है व इससे कैसे निबटा जा सकता है। सबसे खराब हालात नर्सरी-ए और सी के हैं। ऐसे में कमजोर पैदा हुए और जन्मजात बीमार नवजातों के लिए संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है। इन्हें वे बीमारियां भी होने की आशंका है, जो नर्सरी में आने से पहले नहीं होती। यही हालात एमबी अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर (ओटी) व आईसीयू के भी हैं।

सवालों पर अधीक्षक डीपी सिंह के जवाब सेंसेटिव जोन है, तुरंत कार्रवाई करेंगे
नर्सरी की यूनिट ए व सी से संक्रमण स्तर गत पांच माह से नहीं जांचा जा रहा है?

डॉ. सिंह- यह सबसे सेंसिटिव जोन है। ऐसा ध्यान में नहीं था। तुरंत बैठक लेकर मामले का पता लगाता हूं।

संक्रमण मुक्त रखने के लिए स्टाफ पाबंद क्यों नहीं है?
डॉ. सिंह- हर दूसरे माह बैठक होती है। स्टाफ व हैड को सख्ती से पाबंद करते हैं। जिन स्थानों पर संक्रमण स्तर जांचने के निर्देश दे रखे हैं, उन्हें हर 15 दिन में सैंपल भेजने ही हैं।

अब आगे क्या कार्रवाई करेंगे?
डॉ. सिंह- इंफेक्शन कंट्रोल कमेटी में 20 मेंबर्स हैं। हालांकि लिखित में कभी शिकायत आई नहीं, लेकिन मेंबर्स सहित नर्सरी के हैड को तुरंत बुलवाकर बात की जाएगी तथा कारणों का पता लगाया जाएगा।

नियम : हर 15 दिन में होनी चाहिए जांच
ऐसे संवेदनशील स्थानों पर संक्रमण के स्तर की जांच हर 15 दिनों में होनी चाहिए। जांच रिपोर्ट में पाए गए बैक्टीरिया का मूल्यांकन होता है तथा उसी आधार पर संक्रमण विरोधी प्रक्रिया अपनाई जाती है।

होना यह चाहिए
बचाव के लिए स्टाफ को ग्लव्स, मास्क कैप पहन कर ही नवजात का इलाज करना चाहिए।
परिजनों को भी बिना ग्लव्स, मास्क के नवजात के आसपास नहीं रहना चाहिए।
नर्सरी के फर्श की दिन में तीन बार एंटी माइक्रोबियल लिक्विड से सफाई होनी चाहिए।

होता यह है
स्टाफ मास्क, कैप ग्लव्स इस्तेमाल नहीं करता। गाउन भी नहीं पहनता।
परिजनों पर स्टाफ की ओर से रोक टोक नहीं है। वे बिना ग्लव्स, मास्क के नवजात को हाथ लगाते हैं।
दिन में एक बार भी सफाई मुश्किल से हो पाती है व अगली दो बार औपचारिकता की जाती है।

नर्सरी की स्थिति
नर्सरी में 80 बैड हैं। जहां हर रोज औसतन 50 नवजात भर्ती होते हैं। जिनकी उम्र एक से तीस दिन के मध्य होती है। स्टाफ में 33 नर्सिंग कर्मी, 6 रेजिडेंट्स तथा 6 डॉक्टर्स शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 9 वार्ड आया और 9 स्वीपर शामिल हैं।

बड़ी परेशानी
स्टोर द्वारा डिसइंफेक्टेड, फिनाइल आदि की सप्लाई नियमित नहीं होती। वायपर की सप्लाई तो सालभर तक नहीं होती है।

यहां हालात और भी खराब
इमरजेंसी ओटी – यहां 24 घंटे गंभीर और खुले घाव वाले मरीज आते हैं। इसके चलते विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। जबकि यहां के हालात यह है कि ओटी में गंदगी पसरी रहती है। संक्रमण विरोधी प्रक्रिया यहां भी लंबे समय से नहीं हुई है।

आईसीयू – यहां उन मरीजों को रखा जाता है, जो काफी गंभीर स्थिति में होते हैं। इन मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कमजोर होती है। इसके चलते संक्रमण का खतरा भी काफी बढ़ जाता है।

दुष्प्रभाव : घातक बीमारियां दे सकते हैं बैक्टीरिया
सेंसिटिव जोन में संक्रमण स्तर के जांच में तीन बैक्टीरिया अमूमन मिलते ही हैं। यदि इन्हें जल्दी समाप्त नहीं किया जाए तो ये कई अलग-अलग रूप बदल सकते हैं, जो पहले से अधिक घातक भी साबित हो सकते हैं।
स्टेप्टोकॉकस – इस बैक्टीरिया से निमोनिया, सांस लेने में तकलीफ आदि रोग हो सकते हैं।
ई-कोलाई – यह बैक्टीरिया तेज बुखार, यूरीन ट्रैक में संक्रमण, फीड करने में अरुचि पैदा कर सकता है।
साल्मोनेला – यह बैक्टीरिया पेट में जाकर कई प्रकार की व्याधियों को पैदा कर सकता है।

Previous articleचार पदो के लिए के लिए 09 प्रत्याषीयों के लिए होगा मतदान
Next articleकैबिनेट मंत्री कटारिया अस्पताल में भर्ती, अहमदाबाद में हुआ घुटने का प्रत्यारोपण
Contributer & Co-Editor at UdaipurPost.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here