पोस्ट। दिल्ली की अंग्रेजी मासिक पत्रिका ’’कैरवैन’’ के नवीनतम अंक में छपी एक रिपोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को कटघरे में खडा कर दिया है। यह रिपोर्ट एक सी.बी.आई जज की रहस्यमय मृत्यु के बारे में है जिसने गुजरात के, सन 2005 के सोहराबुद्दीन एन्काउण्टर हत्या के केस में सौ करोड रूपये की रिश्वत लेने से इंकार कर दिया था।
जज की मृत्यु के तीन वर्षों के बाद उनके परिवार ने अपनी चुप्पी तोडी है तथा, जज की मृत्यु के 29 दिनों के अंदर उनके स्थान पर आये जज द्वारा अमित शाह को क्लीन चिट देने पर प्रश्न चिन्ह लगाया है। परिवार के सदस्यों ने उन परिस्थितियों को लेकर कई चिंताएं उठाई हैं, जिनमें 48 वर्षीय जज मृत पाये गये थे। परिवार वालों का कहना है कि उनके सभी प्रश्नों को यह कहकर नजर अंदाज कर दिया गया था कि जज की मृत्यु ’’मैसिव कार्डिक अरेस्ट’’ के कारण हुई।
कथित रुप से बृजगोपाल हरकिशन लोया, जिनकी दिसम्बर 2004 में नागपुर जाते समय रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई, को शाह के पक्ष में निर्णय देने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहित शाह ने उत्त* रकम देने की पेशकश की थी। ज्ञातव्य है कि तत्कालीन नरेन्द्र मोदी सरकार में जूूनियर होम मिनिस्टर के रूप में शाह का नाम इस केस में मुख्य आरोपी के रूप में था।
कैरवैन मैगजीन ने अपनी रिपोर्ट में स्वर्गीय न्यायाधीश की बहन अनुराधा बियानी के हवाले से कहा है कि कैसे तत्कालीन चीफ जस्टिस ’’उन्हें (मृत जज) सिविल ड्रैस में देर रात को मुलाकात के लिए बुलाते थे तथा उनके ऊपर जल्दी से जल्दी तथा सकाकारात्मक निर्णय देने के लिए दबाव डालते थे।’’ अनुराधा बियानी ने आरोप लगाया है कि ’’मेरे भाई को अनुकूल निर्णय देने के एवज में सौ करोड रूपये देने की पेशकश की गई थी; स्वयं चीफ जस्टिस मोहित शाह ने यह प्रस्ताव दिया था।’’
इस खुलासे से उत्साहित कांग्रेस ने समस्त मामलों की जांच की मांग की है। बुधवार को यहां पार्टी प्रवत्त*ा अभिषेक मनु सिंघवी ने ए.आई.सी.सी.की प्रैस ब्रीफिंग में कहा कि सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में केस की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए तथा तत्कालीन हाईकोर्ट चीफ जस्टिस के विरुद्घ लगाये गये आरोपों की जांच होनी चाहिए तथा मृत न्यायाधीश के पुत्र द्वारा लगाये गये इस आरोप की भी जांच की जानी चाहिए कि, चीफ जस्टिस शाह ने उनके पिता की रहस्यमय मृत्यु की जांच के लिए आयोग गठित करने से इंकार कर दिया था।
गुजरात के कई कांग्रेस नेता, जिनमें पार्टी के प्रवत्त*ा शत्ति* सिंह गोहिल भी शामिल हैं, तुरत-फुरत-ट्विटर पर सक्रिय हो गये तथा कयास लगाने लगे कि क्या लोया की हत्या में अमित शाह का हाथ था।
पत्रकार निरंजन टाकले, जिन्होंने कैरवैन में छपी रिपोर्ट का संकलन किया है, का कहना है कि जज लोया के पिता हरकिशन ने भी उन्हें बताया कि उनके पुत्र ने उन्हें बताया था कि उन्हें मुंबई में एक घर तथा धन के बदले में अनुकूल निर्णय देने के प्रस्ताव दिये गये थे। लोया के परिवार के सदस्यों ने न्यायाधीश की मृत्यु के बताये गये विवरण तथा मृत्यु के बाद जो कार्यवाही की गयी उसमें असंगतियों का खुलासा किया तथा जज की मृत देह की हालत के बारे में बताया। मृत्यु की घटना पर जांच आयोग गठित करने की परिवार वालों के अनुरोध पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
लोया की मृत्यु के कुछ समय बाद ही, एक नये जज, एम.बी.गोसावी को केस सौंपा गया। गोसावी ने 17, दिसंबर 2014 को निर्णय सुरक्षित रखने से पूर्व तीन दिन संबंधित पाॢटयों की दलीलों को सुना। उसके बाद 30 दिसंबर को निर्णय सुनाया जिसमें अमित शाह को दोषमुत्त* करार दिया गया।
इस निर्णय पर, फिर बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की गई, जिसने अपील को खारिज कर दिया।
गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट में अमित शाह को दोष मुत्त* किये जाने को चुनौती देने वाली याचिका की भी यही नियति हुई।
जिस तरीके से सुनवाई की गई, उस पर भी प्रश्न उठाया गया है। केस की सुनवाई तीन अलग न्यायाधीशों ने की, जो कि अपने आप में सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की सीधी अवहेलना थी कि केस गुजरात के बाहर स्थानान्तरित किया जाए व शुरु से आखिर तक एक ही जज केस की सुनवाई करे। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश सी बी आई की याचिका पर दिया था।
सितम्बर, 2012 में जस्टिस आफताब आलम एवं रंजना प्रकाश देसाई ने बॉम्बे हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति को, शुरु से अंत तक एक ही जज द्वारा केस की सुनवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिये।
इसके बाद भी, मोदी के प्रधानमंत्री बनने के एक महीने के अंदर ही, 25 जून, 2014 को पहले न्यायाधीश का स्थानान्तरण हो गया। उस जज की गलती यह थी कि उसने, एक बार भी न्यायालय में उपस्थित नहीं होने के लिए अमित शाह को फटकार लगाई थी।
जज बी एच लोया, जिन्होंने उस वर्ष अक्टूबर में केस का चार्ज लिया, ने शाह को व्यत्ति*गत रूप से उपस्थित होने की छूट दी थी, लेकिन ’’केवल आरोप फ्रेम किये जाने तक।’’ उन्होंने इस बात पर अप्रसन्नता जताई कि मुंबई में उपस्थित होने के बाद भी शाह तारीख पर कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए। सुनवाई की अगली तारीख 15, दिसंबर की तय की गई, लेकिन 1 दिसंबर को जज लोया की मृत्यु हो गई।
परिवार को सारे संदेह इसलिए हैं क्योंकि लोया स्वस्थ थे, रोज दो घंटे तक टेबल टेनिस खेलते थे और ह्रदय रोग का कोई आनुवांशिक इतिहास भी नहीं था। उनके माता पिता उम्र के आठवें दशक हैं और जीवित हैं तथा सक्रिय भी।
जज लोया 29 नवम्बर 2014 को अपने एक सहकर्मी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए नागपुर गये थे। 30 नवम्बर को रात 11 बजे उन्होंने 40 मिनट तक पत्नी से बात की थी वे काफी खुश लग रहे थे कहा जाता है कि उन्हें 12.30 बजे कार्डिक अरैस्ट हुआ और उनकी मृत्यु हो गयी।
उनकी मृत्यु काफी संदिग्ध थी, और इन कारणों के आधार पर उनकी मृत्यु की जांच की जानी चाहिए थी।
-दो साथी जज जो उनके साथ नागपुर गये थे और जिनके आग्रह पर लोया शादी में शामिल होने नागपुर गये थे वे उनकी मृत्यु के डेढ माह बाद भी उनके परिवार से नहीं मिले। ना ही ये दोनों जज उनके शव के साथ उनके लाटूर स्थित खानदानी घर पहुंचे।
-उन्हें एक मामूली से दांडे हॉस्पिटल क्यों ले जाया गया?
-दोनों जजों ने कहा कि लोया खुद हॉस्पिटल की सीडियां चढकर गये थे वहां उन्हें कुछ दवाइयां दी गयी। इसके बाद उन्हें दूसरे निजी अस्पताल मैडिट्रीमा अस्पताल ले जाया गया वहां उन्हें ’’मृत लाया’’ घोषित कर दिया गया।
-पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हर पेज पर उनके चचेरे भाई के रूप में किसने साइन किये। लोया के मोबाइल से उनके परिवार को संघ कार्यकर्ता ईश्वर बाहेतीन ने क्यों सूचना दी, नागपुर पुलिस या दोनों जजों ने क्यों नहीं।
-लोया के मोबाइल से कॉल रिकॉर्ड व टैक्स्ट मैसेज किसने डिलीट किये थे?
-परिजनों को दोबारा पोस्टमार्टम नहीं करवाने के लिए क्यों मनाया गया?
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यन्त दवे कहते हैं, उन्होंने तत्कालीन सीजेआई एच एल दत्तू को लिखे एक पत्र में मोहित शाह को सुप्रीम कोर्ट के जज के पद पर पदोन्नति नहीं देने की अपील की थी। उन्होंने लिखा था कि विद्वान ट्रायल जज को बार-बार किसी ना किसी बहाने से बदला गया वो भी माननीय कोर्ट की मंजूरी लिए बिना.., मैं उस अदालती आदेश की बात नहीं कर रहा हूं जो अमित शाह के पक्ष में दिया गया है बल्कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस माोहित शाह की कारगुजारियों के बारे में बात कर रहा हूं।
’’इस स्तर पर उनके केस पर किसी भी पुनॢवचार से नागरिकों के जेहन में गंभीर व उचित संदेह जन्म लेंगे। हो सकता है सरकार उन्हें पुरस्कार स्वरूप किसी राज्य का राज्यपाल बना दे लेकिन कालेजियम द्वारा ऐसा करना बिल्कुल अलग बात होगी। मैं ससम्मान आग्रह करता हू कि न्यायपालिका के वृहद हितों के लिए ऐसा ना किया जाए।’’
जस्टिस शाह को 2005 में गुजरात हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज नियुक्त किया गया था 1991 में उन्हें स्थायी जज बनाया गया उसके बाद 2009 में उन्हें प्रमोशन देकर कोलकाता हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया इसके एक साल बाद उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। 9 सितंबर 2015 को वे रिटायर हो गये।

खबर अंग्रेजी मासिक पत्रिका ’’कैरवैन’’ में छपी रिपोर्ट और राष्ट्रदूत में इस रिपोर्ट की खबर की हिंदी अनुवाद में छपी होने के आधार पर है .

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