IMG_0148-300x225उदयपुर। मेवाड़ में थिएटर एज्यूकेशन की शुरुआत काफी पहले हो जानी चाहिए थी। कारण यह है कि विश्व को नाट्य और कला संस्कृति से परिचित करवाने में राजस्थान सबसे अव्वल रहा है। यहां से जो कलाकार बॉलीवुड गए उन्होंने अपनी अलग से पहचान बनाई है। यह कहना है जितेंद्र चौहान (युधिष्ठिर) का। अवसर था, राजस्थान विद्यापीठ द्वारा थिएटर एज्यूकेशन की शुरुआत के अवसर पर सुखाडिय़ा रंगमंच पर आयोजित समारोह का। इस अवसर पर उपस्थित चाणक्य सीरियल फेम डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक ज्ञान को पहुंचाना ही थिएटर एज्यूकेशन है। व्यक्ति भले ही एक अच्छा और बड़ा कलाकार नहीं बनें, लेकिन उसमें वे पर्सनालिटी डवलपमेंट को लेकर सारे गुण विकसित हो जाना ही बड़ी बात है। कार्यक्रम में गुजराज की सीनियर कस्टम ऑफिसर रोली अग्रवाल भी बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित थीं। उन्होंने भी विद्यापीठ के इस प्रयास की सराहना की। इस अवसर पर कोर्स से जुड़े ब्रोशर का विमोचन भी किया गया। कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने थिएटर एज्यूकेशन कोर्स की महत्ता एवं संचालन की सारी प्रक्रिया से रूबरू करवाया। कलाकार अशोक बांठिया ने कोर्स की रूपरेखा तथा प्रायौगिक ज्ञान की बारीकियों से लोगों को अवगत करवाया। चौहान ने बताया कि हर व्यक्ति में कलाकार छीपा होता है, जिसे बाहर निकालना जरूरी होता है। हमारे ग्रामीण और बीहड़ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों भी कला होती है।
इन कलाओं को निखारने के लिए या संबंधित कलाकार को मौका देने के लिए एक प्लेटफार्म होना जरुरी है, क्योंकि हर व्यक्ति मुंबई तक दौड़ नहीं लगा सकता है। लगा भी लेता हैं तो उसे मुकाम नहीं मिल पाता है। इस लिहाज से थिएटर एज्यूकेशन से जुड़े एक प्लेटफार्म का होना जरूरी है। वहीं डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि ज्ञान एवं कला का आदान-प्रदान करने वाला ही कलाकार होता है। कला और कलाकार का मुख्य उद्देश्य भी यही है। जब तक इस ज्ञान को हम समाज के अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंचा पाएंगे, तब तक यह प्रक्रिया अधूरी है।

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