दोनों ही पार्टियों में एक जैसा माहौल

उदयपुर। निकाय चुनाव में अब चार दिन शेष रह गए हैं। शनिवार सुबह मतदान होगा। सभी वार्डों में प्रत्याशी अलसुबह से देर रात तक समर्थकों के साथ लगे हैं लेकिन एक बात विशेष रूप से देखने में आई है कि पिछले बोर्डों के पार्षद और कई वरिष्ठ नेता चुनाव मैदान में प्रत्याशियों के साथ नजर नहीं आ रहे हैं।
प्रत्याशी घर-घर संपर्क करने, पोस्टर, बैनर लगवाने तथा सुबह और शाम को रैलियों के बाद येन, केन प्रकारेण चुनाव कैसे जीत सकते हैं, पर विचार कर रहे हैं लेकिन उन्हें मार्गदर्शन देने वाला कोई भी अनुभवी या वरिष्ठ नेता नहीं मिल रहा है। दोनों ही पार्टियों में कुछ ऐसे ही हालात हैं। बड़े नेताओं की सभा में मंच से भाषण देने तो सभी एक साथ आते हैं लेकिन बेचारा प्रत्याशी अकेला ही अपने परिजनों, रिश्तेदारों के साथ प्रचार में लगा हुआ है।
लापता रहने वाले पूर्व पार्षदों की यह फेहरिस्त यूं तो काफी लम्बी है लेकिन निवर्तमान बोर्ड के ही उपमहापौर महेन्द्रसिंह शेखावत, पार्षद अर्चना शर्मा, विजय आहूजा, प्रेमसिंह शक्तावत, केके कुमावत, दुर्गेश शर्मा, किरण जैन आदि अपने वार्डों में जनसंपर्क करते नजऱ नहीं आए हैं। हालांकि क्रभाईसाहबञ्ज के साथ रविवार को कार्यकर्ता सम्मेलनों में कुछ लोग दिखे थे लेकिन अपने अपने वार्ड में प्रत्याशी के साथ कोई नहीं जा रहा है। कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का है। मोहम्मद अय्यूब, मनीष श्रीमाली, मुस्लिम अली बन्दूक वाला, जीवनलाल गमेती सहित कई पार्षद अपने वार्ड में प्रत्याशी के साथ जनसंपर्क करने से बच रहे हैं।
प्रत्याशियों के साथ जनसंपर्क में नहीं जाने से राजनीतिक हलकों में कई चर्चाएं हैं। इनमें उन्हें खुद को टिकट नहीं मिलना, उनके समर्थकों को टिकट नहीं मिलना आदि शामिल हैं। यहां तक कि पूर्व में सभापति रह चुके रवीन्द्र श्रीमाली, युधिष्ठिर कुमावत और पूर्व में सभापति रह चुकी तथा हाल पीएचईडी मंत्री बनीं किरण माहेश्वरी भी इस चुनाव से बेखबर हैं। जानकारों का मानना है कि बच्चों को हाथ में तलवार पकड़ाकर मैदान में उतार दिया लेकिन सिखाने वाला और समझाने वाला कोई नहीं। कहीं ऐसा न हो कि बच्चा तलवार से खुद का ही हाथ काट ले।
जनसंपर्क में नहीं बड़े नेता भी
भाजपा में टिकट वितरण से नाराज़ कमल मित्र मंडल के ताराचंद जैन, महेंद्र सिंह शेखावत, अनिल सिंघल आदि ने अपने आप को निकाय चुनाव में निष्क्रिय कर दिया है। इनके निष्क्रिय होने से कटारिया गुट कहीं खुश भी है कि अगर ये सक्रिय हो भी गए तो कहीं पक्ष के बजाय विपक्ष में काम न करे। प्रमोद सामर, युवा मोर्चा अध्यक्ष जिनेन्द्र शास्त्री जैसे प्रेस विज्ञप्तियों में सक्रिय रहने वाले पदाधिकारी अब भी प्रेस विज्ञप्तियों में अवश्य सक्रिय हैं लेकिन चुनावी मैदान में कहीं सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। संभव है कि इन्हें भी कहीं न कहीं टिकट काटे जाने का दर्द है।
कांग्रेस के नेताओं में भी ले लें तो रविवार को सचिन पायलट के दौरे में सभी एक साथ दिखे लेकिन जनसंपर्क कर प्रत्याशियों का हौसला बढ़ाने के नाम पर कोई मैदान में नहीं आया है। प्रत्याशी अपने ही दम पर जन संपर्क में लगे हुए हैं। चुनाव कार्यालयों के उद्घाटन में जरूर दिनेश श्रीमाली, नीलिमा सुखाडिय़ा आदि दिखे थे।

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