Namak_Ka_DAroga

उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘‘रंगशाला’’ में मुशी प्रेमचंद की अमर रचना ‘‘नमक का दरोगा’’ मंचित किया गया जिसमें वर्तमान हालात तथा इंस्पैक्टर राज के चलन का जीवन्त चित्रण किया गया।
शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में रविवार शाम चंडीगढ़ के नाट्य कलाकारों ने मुंशी प्रेमचंद की रचना ‘‘नमक का दरोगा’’ का नाट्य मंचन श्री डॉ. पी. चन्द्रशेखर के निर्देशन में किया। तकरीबन सौ साल से ज्यादा पहले लिखी यह कथा आज में हमारी व्यवस्थाओं पर खरी उतरती प्रतीत हुई। यह कथा उस जमाने की है जब अंग्रेज सरकार ने नमक का कानून लागू किया व नमक के आम उपभोग पर टैक्स लगाकर करोड़ों का धन वसूला। इसके संचालन के लिये सरकार ने नमक का विभाग बनाया किन्तु सरकार की इस व्यवस्था से लूट, घूसखोरी और चालाकी का दौर शुरू हो गया तथा आम जनता त्रस्त हो गई। नाटक का नायक बंशीधर मध्यमवर्गीय युवा है जिसे उसका पिता समझाता है कि नौकरी में ओहदे पर ध्यान नहीं दे बल्कि ऐसी नौकरी ढूंढे जिसमें ऊपरी आय हो। उसका मानना था कि वेतन मनुष्य देता है जिसमें बरकत नहीं ऊपरी आय ईश्वर देता है इसमें बरकत ही बरकत है।

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सयंयोगवश बंशीधर को नमक विभाग में दरोगा बनाया जाता है तथा बंशीधर ने अपने काम से छः महीने में सरकार को खुश कर दिया। इसी दौरान पंडित अलोपीदीन जो नमक का बड़ा व्यापारी है उसे बंशीधर चोरी छिपे नमक ले जाने के आरोप में पकड़ लेता है। अलोपीदीन उसे बहुत सारी रिश्वत देने की कोशिश करता है मग रवह नहीं मानता। बाद में अदालत में बंशीधर को अदालत से फटकार मिलती है और अलोपीदीन बाइज्जत बरी हो जाता है। और बाद में बंशीधर की नौकरी चली जाती है।
घर लौटने पर पिता से डांट व ताने सुनने को मिलते हैं इधर धन की महिमा खत्म नहीं होती एक दिन अलोपीदीन बंशीधर के घर आता है और उसे अपनी सारी सम्पत्ति का मैनेजर नियुक्त करता है और बंशीधर भावुक हो कर घुटने टेक देता है। नाटक का एक-एक पात्र प्रस्तुति को सशक्त बनाने में कामयाब रहा। वहीं गीत-संगीत ने नाट्य प्रस्तुति को रोचक व सुरीला बनाया। कलाकारों में जसविन्दर, चाइनिस गिल, विनोद, जसवीर, रिन्कू, सचिन, रमण जग्गा, विनीत व विनोद मौर्य शामिल है। नाटक का संगीत चादनिस गिल का था। प्रकश व्यवस्था चक्रेश कुमार की थी।

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