निर्माण निषेध क्षेत्र का मामला

किसी जनप्रतिनिधि ने विधि नेताओं से नहीं की चर्चा

उदयपुर, निर्माण निषेध क्षेत्र में नोटिस के बाद एक ओर जहां नोटिस मिलने वाले परेशान हुए दर-दर भटक रहे है दूसरी और जनप्रतिनिधि बिना दुख दर्द समझे सिर्फ हवा में बाते कर रहे है। हाईकोर्ट के आदेश आये एक महिना से ज्यादा हो चुका है लेकिन जनता को राहत देने के लिए अभी तक किसी ने प्रभावी कदम नहीं उठाया।

हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार देखे तो उदयपुर शहर के करीब १.५० लाख जनता निर्माण निषेध क्षेत्र की चपेट में है और २५ हजार मकान और करीब दर्जन भर कालोनियां आ रही है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद यूआईटी और नगर परिषद ने करीब १५० मकानों को नोटिस भेजे नोटिस पाने वालो के साथ उन क्षेत्रों के लोगों की नींदे भी उडी हुई है। प्रभावित लोग एक जनप्रतिनिधि से दूसरे जनप्रतिनिधि के दर पर भटक रहे है। लेकिन सभी ने अभी तक सिर्फ आश्वासन ही दिये है अभी तक किसी नेता, जनप्रतिनिधि या उच्च अधिकारी ने जनता को राहत देने के लिए कोई कानूनी सलाहकार से चर्चा नहीं की सारी बाते बस हवा में की जा रही है।

किसी भी पार्टी के नेता हो: नगर परिषद सभापति ने १५ दिन पूर्व कहां था हम सहमति करेगें जनताको राहत दिलायेगें लेकिन अभी तक वह दिन नहीं आया। किरण माहेश्वरी ने भी राहत की बात कही लेकिन किसी कानूनी जानकारी से राय लेकर आगे का कोई कदम नहीं उठाया। शहर विधायक ने भी ज्ञापन दिया,जनता को राहत देने के वादे किये लेकिन किया क्या ना तो किसी कानून के जानकार से राय ली न ही कोई वकील से सम्पर्क किया। यही हाल कांग्रेसी नेताओं का भी है । सांसद रघुवीर मीणा, ग्रामीण विधायक सज्जन कटारा, इन्होने भी जनता को बहलाने के लिए सिर्फ आश्वासन दिये ना तो मुख्यमंत्री से सम्पर्क साधा ना ही अधिकारियों से जानकारी मांगी। हाईकोर्ट के आदेश का भी किसी ने सही ढंग से अध्ययन नहीं किया। कानून के जानकारों के अनुसार आदेश में साफ लिखा है कि अवेध निर्माण तोडे जाये। उसमें कही नहीं लिखा कि मकानों को तोडा जाय और यूआईटी नगर परिषद जिनको नोटिस दे रही है। व सिर्प* खाना पूर्ति के लिए भेजी गयी सूची थी उन सूचि में किसी के नाम से आदेश नहीं है इसका मकान तोडा जाय। जिन व्यवसायिक अवेध निर्माणों को तोडना या उनके नामों सहित हाईकोर्ट ने आदेश दिये है। यूआईटी, नगर परिषद और प्रशासनिक अधिकारी आम जनता के बीच में लाकर एक गलती कर चुके है और अब और गलती करने जा रहे है।

राजस्थान जनजाति आयेाग के उपाध्यक्ष दिनेश तरवाडी ने प्रभावी कदम उठाते हुए सोमवार को पीडितों के साथ जयपुर जाकर मुख्यमंत्री से वार्ता की। जहां पता चला कि मुख्यमंत्री आम जनता पर बरसने वाले कहर से ही अंजान है उन्हे ना तो किसी अधिकारी ना ही अपनी पार्टी के स्थानिय नेताओं ने सूचित किया जितने भी ज्ञापन आये बस रद्दी की टोकरी में पहुंच गये।

कानूनी जानकारों का कहना है कि अगर जनता को सही तरीके से पैरवी की जाए तो मकान को टूटने से बच सकते है।

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