DSC_6084उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के लोक प्रशासन विभाग द्वारा आयोजित ‘भारत में प्रशासनिक संस्कृति‘ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए हेमचंद्राचार्य उत्तरी गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. एल. गोदारा ने कहा कि किसी भी संगठन, विशेष रूप से निजी क्षेत्र के उद्यमों में कार्पोरेट नैतिकता और सामाजिक उत्तर दायित्व की प्रशासनिक संस्कृति के बिना उसकी छवि और उपादेयता सिद्ध नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के इस दौर में संगठनों की आंतरिक और बाहरी दोनों ही प्रकार की संस्कृतियों का अपना महत्त्व है।

इस अवसर पर बोलते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. आई. वी. त्रिवेदी, कुलपति, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय ने कहा कि प्रशासनिक संस्कृति विशेष रूप से सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली बहुत उलझी हुई तथा जनता से विमुख है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक संस्कृति के कई रूप पुलिस संस्कृति, सचिवालय संस्कृति, पोस्ट ऑफिस संस्कृति, विश्वविद्यालय संस्कृति एवं पंचायतराज संस्कृति आदि दिखाई देते हैं।

DSC_6074कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. शरद श्रीवास्तव, अधिष्ठाता, विश्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत में आधुनिक प्रशासनिक संस्कृति ब्रिटिश उपनिवेशवाद की एक विरासत है जो अंग्रेजी के भारत से चले जाने के बाद भी नौकरशाही के रूप में जनता को प्रताड़ित कर रही है। आज इस पर चिंतन करते हुए इस व्यवस्था में बदलाव लाने की महत्ती आवश्यकता है।

इससे पूर्व संगोष्ठी के निदेशक प्रो. एस. के. कटारिया, अध्यक्ष, लोक प्रशासन विभाग ने स्वागत उद्बोधन देते हुए कहा कि प्रशासनिक संस्कृति नामक नए विषय को सैद्धांतिक आधार देने एवं शोध को बढ़ावा देने के लिए इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया है।

संगोष्ठी में राजस्थान विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग की अध्यक्षा प्रो. प्रीता जोशी, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रो. संजीव महाजन, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. ए. एस. मलिक, नागपुर विश्वविद्यालय के धर्मेश धवनकर तथा माणिक्यलाल वर्मा महाविद्यालय भीलवाड़ा की डॉ. देवकांता शर्मा ने भी अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। डॉ. देवकांता शर्मा ने भारत की शिथिल न्यायिक प्रणाली पर गंभीर शोधपरक प्रश्न उठाते हुए कहा कि यदि अंधेरे में न्याय का दीपक ही बुझ जाये तो पीड़ित जनता को रोशनी कहां से मिलेगी। तारीख-दर-तारीख की भारतीय न्याय प्रणाली लोगों में कुंठा और सरकार के प्रति अविश्वास पैदा करती है।

कार्यक्रम के अंत में आभार संगोष्ठी संयोजक प्रो. सी. आर. सुथार ने व्यक्त किया तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. गिरिराज सिंह चौहान ने किया।

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