indexमुंबई और ठाणे में बसे करीब 40 लाख उत्तरभारतियों को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपना तारणहार बनाना चाहती है। इसलिए छोटे-छोटे सांस्कृतिक समारोहों से लेकर तबेलों में लिट्टी-चोखा के बहाने भी हिंदीभाषियों को रिझाने की कोशिश की जा रही है।
लोकसभा चुनाव की आहट सुनाई देते ही उत्तरभारतीय नेता अपने समाज के साथ घुलते-मिलते दिखाई दे रहे हैं। बीते रविवार को ऐसा ही एक जमावड़ा मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह नेगोरेगांव के एक तबेले में लिट्टी-चोखा कार्यक्रम के बहाने किया, जिसमें बांद्रा से दहिसर तक के प्रमुख उत्तर भारतीय इक_ा हुए। कोशिश यह भी की जा रही है कि समाज के कार्यक्रमोंमें सभी हिंदीभाषी नेता एक साथ हंसते बोलते दिखाई दें, ताकि एकता का संदेश दिया जा सके। यही कारण है कि इस कार्यक्रम में मुंबई के एकमात्र हिंदीभाषी सांसद संजय निरुपम और राज्य में अल्पसंखयक मामलों के मंत्री मोहममद आरिफ नसीम खान के साथ नई मुंबई के कांग्रेस नेता हरबंश सिंह भी उपस्थित थे। उत्तर प्रदेश से मुंबई और ठाणे में आकर बस गए उत्तर भारतीय व बिहारी मतदाता हमेशा से कांग्रेस का मजबूत वोटबैंक माने जाते रहे हैं। शिवसेना द्वारा उत्तरभारतियों पर निशाना साधने के बाद से तो यह वर्ग कांग्रेस के और करीब आ गया। 1990 के बाद बाल ठाकरे की हिंदुत्ववादी भूमिका व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से उसके गठजोड़ के बाद उत्तर भारतीय मतदाता शिवसेना के प्रति थोड़ा नरम जरूर पड़े थे, लेकिन उसके मतदाता कभी नहीं बन सके।
पिछले कुछ वर्षो में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उदय ने उसके मन में एक और भय पैदा कर दिया है। महाराष्ट्र भाजपा भी स्वयं को शिवसेना और मनसे जैसे दलों से न तो अलग कर पाती है न ही चुनाव में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व दे पाती है, इसलिए राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद उसे उत्तरभारतियों का उतना समर्थन नहीं मिलता, जितना कांग्रेस जुटा ले जाती है। महाराष्ट्र में इसी वर्ष लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव भी होने हैं।

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