उदयपुर . देश का बहुचर्चित सोह्राबिद्दीन एनकाउंटर मामला जिसमे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया सहित गुजरात और राजस्थान व्के गुजरात के  बड़े बड़े पुलिस अधिकारी फंसे हुए थे जो आज इस मामले से बरी हो कर अपना कद बढाने में लगे हुए है. लेकिन इसी मामले से जुड़े छोटे पुलिसकर्मी कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे है. जिम्मेदार बड़े लोग चेन की सांस ले रहे है और छोटे पुलिस कर्मी उनका मोहरा बन परेशानियों में ज़िन्दगी जी रहे है.
 सोहराबुद्दिन और तुलसी एनकाउंटर केस में  दो पुलिस कर्मियों राजस्थान के उदयपुर पुलिस कांस्टेबल करतार सिंह और गुजरात अहमदाबाद  सब इंस्पेक्टर बाल कृष्ण चौबे की याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए मुम्बई सीबीआई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. जब की इसी मामले में बड़े अधिकारियों और नेताओं को बरी किया जा चुका है .
इस मामले में अब छोटे पुलिस कर्मी की कोई सुध लेने वाला भी नहीं है. नेता और बड़े अधिकारियों ने सोहराबुद्दीन और तुलसी के भूत से मानों पीछा छुड़ा लिया हो और अपने सर का भूत अब इन छोटे पुलिस कर्मियों पर डाल कर तमाशा देख रहे है.
सोहराबुद्दीन और तुलसी एनकाउन्टर ले मामले में बुधवार को करतार सिंह व् बालकृष्ण चौबे ने 15 नेताओं व उच्च अधिकारियों के सीआरपी सी की धारा 197 और 227 के तहत बरी होने के बाद इन्हें भी इन धाराओं के तहत बरी करने  का निवेदन करते हुए कोर्ट में याचिका लगाई थी। बुधवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दोनों पुलिस कर्मियों की याचिका खारिज कर दी। इन दोनों सहित इस मामले से जुड़े अन्य अधीनस्थ पुलिस कर्मी अब मुम्बई सीबीआई कोर्ट के चक्कर लगाने को मजबूर हैं। वही मामले से जुड़े सत्ताधारी नेता और , पुलिस अधिकारी न सिर्फ इस मामले से बरी हो गए है, बल्कि उन्होंने इस केस के जरिए जितना पद और कद पाना था, वह पा लिया और अपनी अब टीम को मझधार में छोड़ कर  केस से किनारा कर गए हैं।
मामले में आरोपी बनाए गए अमित शाह इस मामले के बाद ऐसे सुर्खियों में आए कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। मामले से जुड़े आईपीएस रह चुके डीजी बंजारा अब चुनाव लड़ कर विधायक और मंत्री बनने का सपना देख रहे है। सरकार ने इस मामले से जुड़े आईपीएस को भी खूब पदोन्नति दी। एक डीवाई एसपी को डबल प्रमोशन देकर मलाईदार जिले के एसपी की पोस्ट थमा दी और एक आईपीएस रिटायर हो गए तो उन्हें 2 साल का सर्विस एक्सटेंशन देकर अहम जिले में पोस्टिंग दे दी। राजस्थान के आईपीएस दिनेश एमएन को भी सरकार ने जेल से छूटते ही डबल प्रमोशन देकर आईजी बना दिया था। वहीं मामले से जुड़े अधीनस्थ पुलिस कर्मियों को प्रमोशन तो दूर न्याय के लिए भी भटकना पड़ रहा है। इन पुलिस कर्मियों की स्थिति इतनी भी नही है कि वे मजबूत वकील खड़ा कर कोर्ट के सामने अपना पक्ष रख सकें। सीबीआई नेताओं और उच्च अधिकारियों के दबाव में आकर जल्द से जल्द ट्रायल शुरू करवाने का प्रयास कर रही है। ताकि इस मामले में अब तक बरी हो चुके बीजेपी नेता अमित शाह, गुलाबचंद कटारिया, मार्बल व्यवसायी विमल पाटनी, गुजरात के तत्कालीन डीजीपी डीसी पांडे, वर्तमान डीजीपी गीता जौहरी, आंध्रा के आईजी सुब्रमण्यम, गुजरात के आईपीएस राजकुमार पंड्यन, ओपी माथुर, चूडाश्मा, सेवानिवृत आई पी एस डीजी बंजारा, राजस्थान आईपीएस दिनेश एमएन,  गुजरात डीवायएसपी नरेन्द्र अमीन, दो अन्य व्यवसायी अजय पटेल, यशपाल चूडाश्मा सहित 15 लोगों को दोबारा इसमे फंसने का डर न रहे।  सूत्रों की माने तो बरी हो चुके अधिकारियों ने कोर्ट में गुजरात के तत्कालीन इन्सपेक्टर वीए राठौड़ को आरोपी बनाने की एप्लीकेशन लगाई और इस याचिका पर राठोड़ की डिस्चार्ज एप्लीकेशन भी खारिज कर दी गई। जबकि राठौड़ के खिलाफ न तो सीआईडी और न ही सीबीआई ने चार्जशीट पेश की थी। चार्जशीट में राठौड़ के खिलाफ आरोप नही है, फिर भी उन पर चार्ज फ्रेम होंगे। यही हाल कांस्टेबल अजय परमार और संतराम शर्मा के साथ हुआ। सीबीआई ने इन दोनों कांस्टेबलों को मामले में आरोपी नही माना था। इसके बावजूद इनकी डिस्चार्ज एप्लीकेशन भी खारिज हुई। मामले में बरी हो चुके 15 नेता और अफसरों को डर है कि कहीं ये सरकारी गवाह न बन जाए और इन लोगों को दोबारा जेल न जाना पड़ जाए खास बात तो यह भी है कि सीबीआई को मामले में ट्रायल शुरू कराने की इतनी जल्दी है कि वह अधीनस्थ पुलिस कर्मियों को सेशन कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद हाइकोर्ट में भी जाने का समय नही देना चाहती है। इन सब निर्णयों के बाद से राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र पुलिस कर्मियों में भारी रोष है और वे खुद को अपने ही अधिकारियों के अधीनस्थ रहकर अब कमजोर महसूस कर रहे है।
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