udp1111413-11-2013-07-02-00Nउदयपुर। सर्द होती रातों के बीच एमबी अस्पताल के अहाते में मिट्ठू की सांसें जम न जाएं… यह चिंता कई रोगियों के परिजनों को भी सताने लगी है। यूं तो कई लोग हैं जो अस्पताल परिसर में रातें गुजारते हैं, लेकिन युवा मिट्ठू के लिए अपने जख्म के साथ सिर छिपाना मुश्किल हो गया है। ऑटो खलासी इस लावारिस युवा को जितना इलाज ट्रोमा सेंटर में दिया जा सकता था, मिल गया। अब पेट के नीचे बने घाव पर पट्टी कराने के लिए रोज अस्पताल आने की नसीहत दी गई है। मिट्ठू का कहना है कि पिता को सिर्फ फोटो में देखा और मां की मौत कैंसर से हो गई। बहिन की मौत गुर्दे की बीमारी से होने के बाद वह परिवार में अकेला रह गया।

खलासी का काम करते हुए सड़कों पर जिंदगी बिताने वाले इस व्यक्ति को अब सिर छिपाने के लिए छत का इंतजार है। बीते 14 अक्टूबर को सवीना पेट्रेल पम्प के पास दुर्घटना का शिकार हुए इस व्यक्ति को एम्बुलेंस एमबी अस्पताल छोड़ गई और चिकित्सकों ने इस लावारिस के हाथ व पैर के दो ऑपरेशन भी कर दिए। पेट के नीचे के घाव की सुध आने पर ट्रोमा सेंटर से सर्जरी विभाग में रेफर किया गया, जहां इसे भर्ती करने के बजाय प्रतिदिन पट्टी करवाने के लिए आने की सलाह दी गई। रहने का कोई ठिकाना नहीं होने से मिट्ठू ने अस्पताल की सड़कों पर ही डेरा डाल लिया है और भीख मांग पर पेट भर रहा है।

कई बेबस तोड़ते हैं दम

अस्पताल में आए दिन लावारिसों और बेबसों का डेरा अस्पताल प्रशासन ही नहीं चिकित्सकों के लिए भी समस्या का विषय बन गया है। कोई साथ नहीं होने से इन्हें वार्ड में भर्ती करना मुश्किल हो जाता है जबकि बाहर ये इलाज के अभाव में भूख से दम तोड़ देते हैं। बीते महीनों में ऎसे लावारिसों के तीन से चार मामले सामने आए जिन्होंने अस्पताल परिसर में दम तोड़ दिया और उन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी। उल्लेखनीय है कि विगत माह एक लावारिस मौत के चार घंटे बाद तक रेम्प पर पड़ा रहा जिसका शव नर्सिगकर्मियों की सूचना पर उठाया गया।

 

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