उदयपुर. 14 नवम्बर “बालदिवस के रूप में मनाया जाता है . हर स्वयं सेवी संस्थान इस दिन बच्चों के लिए कोई ना कोई कार्य करते है . जिला कलेक्टर ने सुखाडिया सर्कल पर बलून व् अन्य सामग्री बेचने वाले बच्चों को पास बुलाकर उनके हाथों में पुस्तकें  गिफ्ट किट थमाई जिसमे किट में स्कूल बैग, स्लेट, पेन्सिल, बॉक्स, हिन्दी की अक्षरमाला, पानी की बोटल, स्वेटर एवं खिलौने शामिल थे और उन्हें प्यार से पास बुला कर ढेर सारी बातें की उन्हें पढ़ाई के बारे में भी पूछा कि क्या वह पढ़ना चाहते है . गैर सरकारी संगठन इम्पिटस ने उन बच्चों को पढ़ाने का का जिमा भी उठाया रोज़ शाम को आधा घंटा उन्हें वही पढ़ने आने के लिए वादा लिया . इस दौरान नगर निगम आयुक्त ओपी बुनकर, महिला एवं बाल विकास विभाग की उप निदेशक डॉ. तरू सुराणा एवं रेडक्रॉस सोसायटी के उपाध्यक्ष डॉ. रणवीर मेहता आदि उपस्थित थे। इससे पूर्व सभी बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया

हालाँकि बाल मजदूरों के लिए उद्या गया यह कदम काफी अच्छा है लेकिन क्या इस कदम को सार्थक माना जा सकता है? क्या यह बच्चे रोज़ की तरह बलून आदि नहीं बेचेगें ? क्या इस पहल से कोई सूरत बदलने वाली है या यह सिर्फ एक दिन का छपाउ ड्रामा बन कर रह जायेगा ? क्या कोई एसी व्यवस्था नहीं की जा सकती जिससे यह बच्चे अपनी पढ़ाई नियमित कर सकें और इनके परिवार के काम में कुछ हाथ भी बंटा सकें.

या यह कार्यक्रम सिर्फ एक बालदिवस के दिन फोटो खिचाऊ और खबर छपाऊ कार्यक्रम बन कर ही रह जाएगा . अगले साल फिर 14 नवम्बर आयेगा फिर एक संस्था के साथ सारे अधिकारी मिल कर एक और नया कार्यक्रम आयोजित करेगें फिर एक दिन की वाहवाही होगी फिर खबर चलेगी फिर फोटो अखबारों में छपेगा और फिर बच्चे रोज़ की तरह पांच का एक लेलो साहब पांच का एक लेलो साहब कहते हुए बलून बेचेगें ?

Previous articleपद्मावती का ट्रेलर दिखाने पर सिनेमा हॉल में करनी सेना ने की जम कर तोड़फोड़
Next articleहिन्दुस्तान जिंक में 41वां भूमिगत खान सुरक्षा, स्वच्छता एवं सीलिकोसिस जागरूकता सप्ताह मनाया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here