उदयपुर। विश्व के प्रमुख पर्यटन स्थल में से एक। झीलों की नाम से विश्व में मशहूर । दो विश्व प्रसिद्द झीलों के आसपास ताज, ओबोरॉय, ट्राइडेंट, लीला जैसी मुख्य समूह की पांच और सात सितारा होटलें । भारत के चुनिंदा सिटी में से एक जो पहले चरण में ही स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया हमारा उदयपुर .
अब अगर विकास के बजट की बात करें तो नगर निगम और युआई आई टी का मिला कर करीब 600 करोड़ रूपये का बजट। राज्य का गृहमंत्री हमारे शहर का विधायक स्मार्ट सिटी के लिए 1000 करोड़ का बजट।
इतना सब होने के बावजूद भी मात्र एक सिर्फ एक प्रशिक्षित साजो सामान के साथ गीताखोर नहीं है।  उदयपुर शहर को झीलों की नगरी कहा जाता है, लेकिन गोताखोर और उनके तामझाम की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रशासन और निकाय इतने बुद्धिमान है की उन्हें झीलों की नगरी में गोताखोर की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। और यही वजह है की सोमवार को हादसा हुआ था जिसमे ४ साल की मासूम चहक फतहसागर में डूबी थी लेकिन अभी तक उसका शव नहीं मिला है। नगर निगम के रेस्क्यू करने वाला मछली पकड़ने की जाल डाल कर उसको ढूंढने का असफल प्रयास पिछले २० घंटे से कर रहे है। शहर के सारे बड़े अधिकारी आकर रेस्क्यू का दर्शन लाभ लेकर चले गए। कुछ जनप्रतिनिधि और बड़े अधिकारी बड़े बड़े दावे और वादे कर के गए है। जो गोताखोर है उनके पास कोई साधन नहीं सिर्फ  देसी जुगाड़ से लेस है . जिसमे मछली पकड़ने की जाल,  बलाई जेसे सामान जिनसे संयोग से ही कोई बाहर निकाला जा सकता है .

 

प्रशासन और निकाय तो सोये हुए है ही लेकिन झीलों के किनारे ये बड़े बड़े समूह जिनके होटलों में पर्यटक बोट में सवार होकर ही आते है तो क्या इन बड़े बड़े समूह के पास भी गोताखोर या गोताखोरी का साजो सामान नहीं है ? शायद नहीं इनसे कोई सवाल भी पूछे तो केसे इन पर अंकुश लगाए भी तो कोन लगाए। क्यों कि  इन बड़े बड़े समूह के आगे जिले का प्रशासन या अधिकारी तो मामूली भर मात्र है । आखिर में सिर्फ एक ही बात कि हम  पुरे विश्व में महशूर है, स्मार्ट होने पर तुले हुए है लेकिन झीलों की नगरी की बुनायादी जरूरतें भी अभी पूरा होने में बहुत वक़्त लगेगा या यूँ कहिये अभी बहुत जाने जाना बाकी है।

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