उदयपुर। नगर निगम पार्षद ने समिति अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद महापौर और पार्टी के आला कमानों को कुछ बोलते नहीं बना। आखिर तुरत फुरत में नगर निगम की तरफ से इस्तीफा देने वाले पार्षद के वार्ड में ३८ लाख के वर्क ऑर्डर पास हो गए और कार्य भी शुरू करवा दिए। अब बाकी जिन वार्डों में अभी तक कार्य नहीं हुए है वे पार्षद भी इसी तरह का कदम उठाने के बारे में विचार कर रहे है।
पांच दिन पहले वार्ड १० के पार्षद देवेन्द्र जावलिया ने मोर्निंग वाक् के दौरान गृहमंत्री शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया को aइक्रमण निरोधी समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देदिया था।जावलिया ने कहा था कि पिछले तीन सालों में उनके वार्ड में मात्र 37 लाख के काम हुए। वह जनता को जवाब दे भी तो क्या। वहीं उन्हें अतिक्रमण निरोधी समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया, उन्हें लगा कि वह सिर्फ नाम मात्र के अध्यक्ष है और औपचारिकता निभा रहे है क्योंकि असहाय लोगों पर तो निगम तुरन्त कार्रवाई कर रहा है, रसूखदारों के अवैध निर्माण सीना ताने खड़े हुए है। जावलिया के इस्तीफे के बाद निगम में ही नहीं शहर में हडकंप मच गया और सोशल मिडिया पर उदयपुर की जनता ने देवेन्द्र जावलिया के इस कदम की प्रसंशा करते हुए महापौर को आड़े हाथों लिया था। जावलिया के इस कदम के बाद आनन् फानन में निगम प्रबंधन ने वार्ड 10 के लिए 38 लाख के वर्क आॅर्डर पास कर दिए और सिर्फ तीन दिन में पास हुए वर्क आॅर्डर के बारे में जब महापौर चंदर सिंह कोठारी और निर्माण समिति अध्यक्ष पारस सिंघवी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह प्रयास तो तीन महीने से चल रहा था। जावलिया के विरोध के बाद वर्कआर्डर पास हुआ यह मात्र मिथ्या है।
इधर सूत्रों की माने तो महापौर के कार्य से नाखुश कई वार्ड के पार्षद और समिति अध्यक्ष इसे है जो यह कदम उठा सकते है। एक समिति अध्यक्ष ने नाम नहीं छपने की सूरत में बताया कि समितियां सिर्फ नाम की बनी हुई है इस बोर्ड का सर्वे सर्वा बन कर सिर्फ एक ही आदमी चला रहा है। पार्धदों की परेशानी या जनता की परेशानी से कोई लेना देना नहीं। हमारी समितियों के काम होते है हमसे ही नहीं पूछा जाता है ऐसे में समिति के अध्यक्ष पद पर बने रहने से क्या मतलब जनता को जवाब भी देना पड़ता है। आगे बताया कि बहुत जल्दी तीन समिति अध्यक्ष और इस्तीफा देदेगें। इस पूरे मामले पर जब नेता प्रतिपक्ष मोहसीन खान से बात की गई तो उन्होंने कहा कि भले ही भाजपा के 49 पार्शद सत्ता में हो लेकिन महापौर के आगे किसी की नहीं चलती। एक भी समितिध्यक्ष के पास वह ताकत नहीं है कि वह खुद की मर्जी से उसकी समिति का काम ही करवा ले।

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